हमें तो साहिल-ए-दरिया की प्यास होना था सुकूत-ए-हिज्र का इक ग़म-शनास होना था खुला है इस तरह अब के नई रुतों का भरम ज़मीं को इतना कहाँ बे-लिबास होना था उन्हें भी वक़्त ने पत्थर बना दिया जिन को हमारे अहद का आदम-शनास होना था पहन के मुझ को एक रोज़ तमन्ना का लिबास लहू लहू कोई तस्वीर-ए-यास होना था भटक रहे हो कहाँ दोस्त अपने मरकज़ से तुम्हें तो 'फ़ैज़' के दिल के ही पास होना था