क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ तक आए हम तिरे साथ कहाँ तक आए अपनी कम-ज़र्फ़ी का इज़हार करूँ राज़-ए-सर-बस्ता ज़बाँ तक आए बात कर दी तो पशेमानी क्या तीर वापस न कमाँ तक आए प्यास जो अपनी बुझाना चाहे हल्क़ा-ए-तिश्ना-लबाँ तक आए अभी जारी है नहीं की गर्दान देखिए कैसे वो हाँ तक आए मुतमइन फिरते हैं यूँ सहरा में जैसे हम आब-ए-रवाँ तक आए हम बहारों की तलब में 'नासिर' आख़िरश शहर-ए-ख़िज़ाँ तक आए