चलेगा कौन मिरे साथ हम-सफ़र की तरह किसी की राह नहीं मेरी रहगुज़र की तरह मिरे यक़ीन का इस में क़ुसूर ही क्या है फ़रेब-साज़ मिले मुझ को मो'तबर की तरह न इम्तियाज़ रहा कम-नज़र ज़माने को दिखाई देते हैं सब ऐब भी हुनर की तरह वो कोई शीश-महल हो कि क़स्र-ए-शाही हो ग़रीब को न मिलेगा सुकून घर की तरह नहीं ख़ुलूस का मेआ'र शहर में तेरे यहाँ ज़मीर का सौदा है माल-ओ-ज़र की तरह मिले ज़रूर तिरे आस्ताँ को सर लाखों मगर तड़प न किसी में है मेरे सर की तरह चमकते काँच के टुकड़े फ़रेब देते हैं 'नज़र' के सामने आते हैं वो गुहर की तरह