खुले जो दिल के हैं वो बात साफ़ करते हैं हक़ीक़तों का वही ए'तिराफ़ करते हैं ज़रा सी बात पे अहबाब होते हैं बरहम कभी ख़ताएँ भी दुश्मन मुआ'फ़ करते हैं वो इत्तिहाद की करते हैं बात किस मुँह से जो पैदा क़ौम में ख़ुद इख़्तिलाफ़ करते हैं जिन्हें है आज भी दा'वा चमन-परस्ती का वो साज़िशें भी चमन के ख़िलाफ़ करते हैं बड़ा सुबूत है उन की बुलंद-ज़र्फ़ी का ख़ता जो करके अगर ए'तिराफ़ करते हैं जुनूँ में फ़र्ज़ नहीं भूले तेरे दीवाने हरीम-ए-नाज़ का तेरी तवाफ़ करते हैं 'नज़र' अना का नशा इस क़दर है लोगों में कि हर्फ़-ए-हक़ से भी वो इंहिराफ़ करते हैं