चमकते तारों पे तेरा ही नाम लिखते हैं सुनहरे लफ़्ज़ों में तुझ को पयाम लिखते हैं तिरे दयार पे जब रुक गए हैं मेरे क़दम तिरे ही दर पे तो अब हम सलाम लिखते हैं सुलगते शो'ले तो होते ही हैं जलाने को जो जल चुके हैं वो ज़ख़्मी अवाम लिखते हैं ये कैसे कैसों को हम ने बनाया राह-नुमा हलाल चीज़ को जो अब हराम लिखते हैं बहुत ग़रीब हैं भूके हैं एहतिजाजन हम बयाज़-ए-वक़्त पे ये सुब्ह-ओ-शाम लिखते हैं उन्हें ख़बर नहीं 'साहिर' हम आज हैं आज़ाद जो अपने आप को अब भी ग़ुलाम लिखते हैं