चमन में फूलों का दामान-ए-तार-तार भी देख बहार देख चुका हासिल-ए-बहार भी देख असीर-ए-सुब्ह-ए-तरब शाम-ए-सोगवार भी देख गुज़रते लम्हों का इक और शाहकार भी देख मह-ओ-नुजूम के जलवों से खेलने वाले फ़ज़ा में फैला हुआ रंग-ए-इंतिशार भी देख तिरे ख़याल से आगे तिरी नज़र से परे जो पल रहे हैं वो लम्हात-ए-ख़लफ़िशार भी देख निकल के मरमरीं महलों के सर्द-ख़ानों से तपा तपा सा ग़रीबों का रेग-ज़ार भी देख बहार ग़ुंचा-ओ-गुल से नज़र हटा के ज़रा सिसकती क़ौम के ज़ख़्मों का लाला-ज़ार भी देख ब-नाम-ए-अम्न लिए असलहों के दामन से जो उठ रहा है वो तूफ़ान-ए-शो'ला-बार भी देख लहू लहू है जहाँ जिस्म-ए-आश्ती 'अह्मर' सितम-रसीदों का वो ख़ूँ-चकाँ दयार भी देख