चंद दीवारें किसी को दीं किसी को दर दिए हम ने इक छोटे से घर के कितने टुकड़े कर दिए बे-अदब नंगी निगाहों से बचाने के लिए हम ने मा'नी को बदन अल्फ़ाज़ को पैकर दिए क्या हक़ीक़त की नुमाइश मेरी ख़ातिर जुर्म थी तू ने जो आईना देखा उस के टुकड़े कर दिए रो रहे हो देर से शीशे की किर्चें देख कर तुम ने क्यूँ अहल-ए-जुनूँ के हाथ में पत्थर दिए दोपहर के बा'द उस ने फूल जैसे हाथ से शाम तक लोहे की ज़ंजीरों के टुकड़े कर दिए दिल की गहराई में क्या है मुझ से ऐ 'सौलत' न पूछ जितने दरिया आँख से निकले समुंदर कर दिए