चाँद जिस तरह तन्हा सितारों में है यूँही रौशन वो चेहरा हज़ारों में है जिस ने पूछा नहीं हाल-ए-दिल भूल कर क्या सितम वो मिरे ग़मगुसारों में है झूम कर वो बरसती है काली घटा जश्न-ए-बादा-कशी मय-गुसारों में है वो जिसे मुझ से कोई तअल्लुक़ न था आज भी वो मिरे राज़-दारों में है क्या मेरे क़त्ल में हाथ उस का भी था अब वही तो मिरे पासदारों में है दो क़दम बढ़ के तूफ़ाँ से भिड़ जाइए लाश मल्लाह की तेज़ धारों में है इतना सुन कर के 'ज़ाहिद' मैं सकते में हूँ नाम मेरा भी क़ातिल के यारों में है