चंद लम्हों का ख़्वाब हो जैसे ज़िंदगी इक सराब हो जैसे पी के यूँ मस्त हो गए क़ातिल ख़ून-ए-नाहक़ शराब हो जैसे शैख़ साहिब से जो हुआ सरज़द वो गुनह भी सवाब हो जैसे पुर-सुकूँ शाम को लब-ए-दरिया बज रहा इक रबाब हो जैसे 'नाज़' नाकाम सई है हर गाम तेरी क़िस्मत ख़राब हो जैसे