चाँद पर यूँ काले बादल देख कर अच्छा लगा इक नज़र देखा जो उस को उम्र भर अच्छा लगा मिस्ल-ए-मजनूँ रेग-ज़ारों का सफ़र अच्छा लगा तेरी ख़ातिर जीती बाज़ी हार कर अच्छा लगा हँसते हँसते जान ले ली जान ने इक दिन मिरी जाँ लुटा दी मैं ने जिस दम जान पर अच्छा लगा तेरी यादों के सहारे जी रहा हूँ आज भी गुज़रे जो हमराह तेरे वो सफ़र अच्छा लगा अपनी क़िस्मत पर करूँ मैं रश्क जितना कम है वो क्या बताऊँ तुम से मिल कर किस क़दर अच्छा लगा ऊँचे महलों की रिहाइश हो मुबारक आप को मुझ को अपने गाँव का मिट्टी का घर अच्छा लगा मुझ को अपनी मेहनतों पर है यक़ीं और नाज़ भी ख़ूँ पसीने से मिला है जो समर अच्छा लगा दाद-ओ-तहसीँ की तमन्ना की नहीं तू ने कभी देख कर 'सारिम' तुम्हारा ये जिगर अच्छा लगा