चाँदनी रात में हर दर्द सँवर जाता है जाने क्या क्या सर-ए-एहसास बिखर जाता है देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल हर नए ख़्वाब की ता'बीर से डर जाता है मौत का वक़्त मुअ'य्यन है तो फिर बात है क्या कौन है मुझ में जो हर साँस पे मर जाता है दिल में गड़ जाती है जब साअ'त-ए-माज़ी की सलीब वक़्त रुक जाता है इंसान गुज़र जाता है