चाँदनी हर शब को करती है किनारा चाँदनी तेरे ख़ातिर मुँह को दिखलाती है तारा चाँदनी आज महताबी पे चढ़ता है वो बहर-ए-सैर-ए-माह जानता हूँ कुछ तिरा चमका सितारा चाँदनी बे-ज़रूरत ख़ुश नहीं आती जहाँ में कोई चीज़ फ़स्ल-ए-सरमा में नहीं होती गवारा चाँदनी तू चढ़ा शब को जो महताबी पे बहर-ए-चश्म-ए-बद आसमाँ से उतरे करने को उतारा चाँदनी वस्ल की शब का समा आँखों में छाया है मिरे माह-रू देखे न फिर वैसे दोबारा चाँदनी रोते रोते डूबता है जब शब-ए-फ़ुर्क़त में दिल जानता हूँ साफ़ दरिया का किनारा चाँदनी