चराग़ हाथ में था तीर भी कमान में था मैं फिर भी हार गई तू जो दरमियान में था मैं आसमाँ की हदों को भी पार कर लेती मगर वो ख़ौफ़ जो हाएल मेरी उड़ान में था थी ज़ख़्म ज़ख़्म मगर ख़ुद को टूटने न दिया समुंदरों से सिवा हौसला चट्टान में था बदल भी सकता है अख़बार की ख़बर की तरह तिरा ये वस्फ़ भला कब मिरे गुमान में था अकेला छोड़ दिया धूप में सफ़र के लिए उस एक शख़्स ने जो दिल के साएबान में था यक़ीन तुझ पे भा किस तरह मैं कर लेती तज़ाद हद से ज़ियादा तिरे बयान में था