हमारी तिश्ना-लबी अब सुबू से खेलेगी फ़ुग़ान-ए-दिल रग-ए-जान-ओ-गुलू से खेलेगी सँभल के रहना कि इस बार सैक़ल-ए-अबरू कोई बईद नहीं आबरू से खेलेगी करेगा सैल हर इक लहर को बुलंद अपनी हर एक मौज फ़क़त आबजू से खेलेगी जसारत-ए-रह-ए-पुर-ख़ार देखिए तो सही ये कह रही है मिरी जुस्तुजू से खेलेगी बहुत शगुफ़्ता-ओ-रंगीन गुफ़्तुगू है 'सिराज' चमन में बात तिरी रंग-ओ-बू से खेलेगी