ख़्वाब आँखों में नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं इश्क़ मायूस हुआ हो मगर ऐसा भी नहीं उन की उल्फ़त में उठाए हैं हज़ारों इल्ज़ाम आज तक आँख उठा कर जिन्हें देखा भी नहीं राह-ए-हस्ती में निगाहें तो भटक सकती हैं दिल भटक जाए मगर इतना अँधेरा भी नहीं बढ़ के आए थे कई ग़म पए तस्कीं लेकिन ग़म-ए-दौराँ के मुक़ाबिल कोई ठहरा भी नहीं शरम ऐ बादा-गुसारों कि भरी महफ़िल में बढ़ के ख़ुद जाम उठा ले कोई ऐसा भी नहीं क्या तमाशा है कि आए हैं तसल्ली देने वो जिन्हें दर्द-शनासी का सलीक़ा भी नहीं हर नज़र सत्ह-ए-तबस्सुम पे ठहर जाती है क्या ज़माने में कोई ग़म का शनासा भी नहीं लाख नाज़ुक सही उम्मीद का रिश्ता लेकिन दिल को एहसास की तौहीन गवारा भी नहीं ज़िंदगी को नए ख़्वाबों से सजा कर लाओ ये तबस्सुम तो मिरे ग़म का मुदावा भी नहीं हादसे हो चुके 'अरशद' ग़म-ए-उल्फ़त के तमाम अब तो शायद दिल-ए-मायूस तड़पता भी नहीं