चराग़ ज़ब्त-ए-तमन्ना से जल न जाएँ कहीं गुलों के अश्क सितारों में ढल न जाएँ कहीं इसी लिए हैं गराँ-पा कि हम जो तेज़ चले दयार-ए-यार से आगे निकल न जाएँ कहीं बिछा रहे हैं मिरी राह में जो अंगारे वो हाथ फूल हैं डरता हूँ जल न जाएँ कहीं क़दम क़दम पे बिछाओ बिसात-ए-कैफ़-ओ-निशात शराब और पिलाओ सँभल न जाएँ कहीं हर एक गाम पे अश्कों के गर्म चश्मे हैं दिलों के संग सँभालो पिघल न जाएँ कहीं चले चलो कि भरोसा नहीं हवाओं का अभी हैं साथ अभी रुख़ बदल न जाएँ कहीं दर-ए-हबीब हो या कूचा-ए-अदू 'ख़ालिद' ये आरज़ू है कि अब सर के बल न जाएँ कहीं