ज़मीं-नज़ाद हैं लेकिन ज़माँ में रहते हैं मकाँ नसीब नहीं ला-मकाँ में रहते हैं वो डोल डालें किसी कार-ए-पाएदार का क्या जो बे-सबाती-ए-उम्र-ए-रवाँ में रहते हैं हम ऐसे अहल-ए-चमन गोशा-ए-क़फ़स में भी हिसाब-ए-ख़ार-ओ-ख़स-ए-आशियाँ में रहते हैं न बूद-ओ-बाश को पूछो कि हम फ़क़ीर-मनश सुख़न के मा'बद-ए-बे-साएबाँ में रहते हैं कहाँ तलाश करोगे हमें कि हम तो मुदाम हुज़ूरी-ए-दिल-ए-बे-ख़ानुमाँ में रहते हैं नशे की लहर में ख़ुम ख़ुम लुंढा के आब-ए-हयात सराब-ए-ज़िंदगी-ए-जावेदाँ में रहते हैं नई मोहब्बतें 'ख़ालिद' पुरानी दोस्तियाँ अज़ाब-ए-कशमकश-ए-बे-अमाँ में रहते हैं