चराग़-ए-तनफ़्फ़ुस बुझा चाहता है ख़ुदा जाने अब क्या ख़ुदा चाहता है यहाँ जो किसी का भला चाहता है ज़माना उसी का बुरा चाहता है मुबारक हो तुम को ज़िया-पाश रातें मिरा घर फ़क़त इक दिया चाहता है नहीं कोई रुकता शजर हो जो सूखा परिंदा भी साया घना चाहता है बहुत हो चुकी हैं मोहब्बत की बातें अदब आज लहजा नया चाहता है किनारे पहुँचना ज़रूरी है 'साहिल' समुंदर में तूफ़ाँ उठा चाहता है