चराग़ों का सफ़र है इंतिज़ार-ए-हासिल-ए-शब है लब-ए-जू है कि हम पर भी अंधेरे पानियों में रौशनी करने का जादू है खुली आँखों में ख़्वाबों का जज़ीरा है ख़िराम-ए-अक्स-ए-आहू है शब-ए-वा'दा है गेसू-ए-हवा-ए-यख़ परेशाँ हैं कि ख़ुशबू है सबा सेहन-ए-चमन में आम करती भी तो किस के क़िस्सा-ए-जाँ को हक़ीक़त है कि सारी दास्तानों में कहीं मैं हूँ कहीं तू है ब-लफ़्ज़-ए-ख़ामुशी सारे खंडर आपस में महव-ए-गुफ़्तुगू हैं और सियह मौसम ज़बान-ए-संग में कहता है देखो आलम-ए-हू है हवा-ए-तुंद चाक-ए-बादबाँ से नर्म लहजे में ये कहती है किसी का कब भला इन बावले और सर-फिरे झोंकों पे क़ाबू है मिरा नाला फ़लक की अज़्मतों से जा मिला है शायद ऐ 'शहपर' सहर नम है फ़ज़ा चुप है कि धानी घास के आरिज़ पे आँसू है