सफ़र तवील है एहसान-ए-आसमान न लूँ तिरे ख़याल की चादर को सर पे तान न लूँ तकल्लुफ़ात की जंग और दश्त-ए-ला-महदूद ये सोचता हूँ कि मैं ही शिकस्त मान न लूँ सऊबतों का बदल झूटी राहतें तो नहीं ये तपती धूप में वा'दों का साएबान न लूँ मैं उस से माँग लूँ सारी रिफाक़तें अपनी कि उस ग़रीब का ऐसा भी इम्तिहान न लूँ मिरी निगाह ने ढूँडे हैं रास्ते कुछ और मैं अपनी राह में पहला कोई निशान न लूँ