चराग़ों से ये दामन अपना भर लूँ उजाला ज़िंदगी में अपनी कर लूँ दरारें तो कभी आ कर रहेंगी मैं चाहे जितना भी मज़बूत घर लूँ सियाही तो तआ'क़ुब में रहेगी भले कितना भी क्यों न बन सँवर लूँ मुसीबत रंज-ओ-ग़म तकलीफ़-ए-इंसाँ उठा कर मैं इन्हें शानों पे धर लूँ मिरे घर से कोई भूका न जाए ख़ुदाया तुझ से मैं इतना ही ज़र लूँ इरादों को मिरे परवाज़ दे दे 'अनीस' ऐसा दुआओं में असर लूँ