चर्चा है बहुत जिस का यहाँ नाम बहुत है दर-पर्दा वही शख़्स ख़ूँ-आशाम बहुत है इतना ही तिरे क़ुर्ब का हंगाम बहुत है इक शाम जो मिल जाए वही शाम बहुत है काफ़ी है बहलने को तिरी याद की दौलत ऐ राहत-ए-दिल तेरा ये इनआ'म बहुत है हर मोड़ पे धोका है यहाँ कैसे बसर हो ये दहर पुर-अज़-कुल्फ़त-ओ-आलाम बहुत है दो घूँट से क्या होगा अभी और पिला तू ऐ पीर-ए-मुग़ाँ तल्ख़ी-ए-अय्याम बहुत है बस थोड़ी सी मोहलत तू मुझे और अता कर हाँ ऐ मलक-उल-मौत अभी काम बहुत है कुछ बात यक़ीनन है तिरी ज़ात में 'तारिक़' इस शहर में आया है तो कोहराम बहुत है