चौंक चौंक उठता हूँ ऐ बाद-ए-सबा रात गए कौन देता है दर-ए-दिल पे सदा रात गए आरज़ूओं के मुसलसल कई बादल बरसे मिरे शाने पे वो लहराई घटा रात गए मेरे ही सीने में चेहरे को छुपा कर उस ने दी मिरी शोख़-निगाही की सज़ा रात गए दिल में अब तक है शफ़क़-रंग ख़यालों का हुजूम उस के आरिज़ पे था वो रंग-ए-हया रात गए उस के ए'जाज़-ए-तलत्तुफ़ की तड़प क्या कहिए कोई एहसास का पहलू न बचा रात गए हाए ये रम्ज़-ए-सुख़न आह ये अंदाज़-ए-फ़िराक़ कसमसा और मिरी फ़िक्र ज़रा रात गए था मिरे हाथ में वो दस्त-ए-हिनाई 'मुतरिब' थे दर-ए-दिल पे भी कुछ नक़्श-ए-हिना रात गए