चेहरा बुझा बुझा सा बदन ज़र्द ज़र्द है आलम तमाम ता-बा-उफ़ुक़ गर्द गर्द है अम्न-ओ-सुकून-ए-क़ल्ब अबस ढूँढते हैं आप वो दौर है कि सैद-ए-बला फ़र्द फ़र्द है आए कहाँ से ज़ोर-ओ-कशिश जज़्ब-ए-इश्क़ में जब ख़ुद मिज़ाज हुस्न का कुछ सर्द सर्द है सद मुश्किलात और मसाइब के बावजूद साबित-क़दम रहा जो वही मर्द मर्द है कुछ रह गया न रंज-ओ-मसर्रत में इम्तियाज़ 'हसरत' ख़ुशी ख़ुशी है न अब दर्द दर्द है