चेहरा उदास उदास था मैला लिबास था क्या दिन थे जब ख़याल-ए-तमन्ना लिबास था उर्यां ज़माना-गीर शररगूँ जिबिल्लतें कुछ था तो एक बर्ग-ए-दिल उन का लिबास था उस मोड़ पर अभी जिसे देखा है कौन था संभली हुई निगाह थी सादा लिबास था यादों के धुँदले देस खिली चाँदनी में रात तेरा सुकूत किस की सदा का लिबास था ऐसे भी लोग हैं जिन्हें परखा तो उन की रूह बे-पैरहन थी जिस्म सरापा लिबास था सदियों के घाट पर भरे मेलों की भीड़ में ऐ दर्द-ए-शादमाँ तिरा क्या क्या लिबास था देखा तो दिल के सामने सायों के जश्न में हर अक्स-ए-आरज़ू का अनोखा लिबास था 'अमजद' क़बा-ए-शह थी कि चोला फ़क़ीर का हर भेस में ज़मीर का पर्दा लिबास था