हम भी दीवाने तुम भी दिवाने देख रहे हैं ख़्वाब सुहाने जंगल जंगल सहरा सहरा हम भी गए थे ख़ाक उड़ाने शब भर जाने नींद कहाँ थी सुब्ह को आई रस्म निभाने इक शाइ'र की मौत हुई है किस को बुलाएँ ना'श उठाने दामन पर कुछ दाग़ लगे फिर निकले जो इक दाग़ मिटाने शहर में किस को अपना कहें हम दर्द हमारा कोई न जाने आज 'ज़िया' फिर याद वो आए रिसने लगे हैं ज़ख़्म पुराने