चेहरे से मिरा दर्द कोई भाँप रहा है खुल जाए कहीं राज़ न दिल काँप रहा है एहसास जुदाई का यूँ डसता रहा शब भर जैसे मिरे सीने में कोई साँप रहा है जब क़त्ल की साज़िश में मुलव्विस वो नहीं था फिर आँख मिलाते हुए क्यों काँप रहा है क्या उस से रखूँ राहनुमाई की तवक़्क़ो कुछ दूर ही चल कर जो बहुत हाँप रहा है किस तरह 'शकील' आप को वो क़त्ल करेगा तलवार उठाते हुए जो काँप रहा है