छक गए हैं आज इक साग़र से हम हाथ धो बैठे मय-ए-कौसर से हम बुत-कदे में जा के उस बुत का पता पूछते फिरते हैं हर पत्थर से हम क़स्द-ए-सहरा है दिल-ए-वीराँ के साथ इक बयाबाँ ले चले हैं घर से हम जब रग-ए-जाँ से कमी करता है ख़ून छेड़ देते हैं उसे निश्तर से हम किस क़दर कटती है राह-ए-शौक़ जल्द तेज़ चलते हैं तिरे ख़ंजर से हम क्या कहें किस से कहें किस के लिए फिरते हैं चारों तरफ़ मुज़्तर से हम वो सितमगर रू-ब-रू होगा तो 'दाग़' क्या कहेंगे दावर-ए-महशर से हम