छोड़ता मुझ को न बिस्मिल वो मगर छोड़ दिया सर पे एहसान रहे इस लिए सर छोड़ दिया टुकड़े टुकड़े किया नासेह का गरेबाँ मैं ने शुक्र है उस ने मिरा दामन-ए-तर छोड़ दिया काम सब ख़ाना-ख़राबी के हुए हैं तुझ से रहम खा कर तुझे ऐ दीदा-ए-तर छोड़ दिया फिर कहाँ था न यहाँ था न वहाँ था वो शोख़ दामन उस का जो सर-ए-राहगुज़र छोड़ दिया ले गई थी तिरे दीवाने को घर से वहशत नहीं मा'लूम कि जंगल में किधर छोड़ दिया 'दाग़'-ए-वारफ़्ता-तबीअ'त का ठिकाना क्या है ख़ाना-बर्बाद ने मुद्दत हुई घर छोड़ दिया