छेड़ो तो उस हसीन को छेड़ो जो यार हो ऐसी ख़ता करो जो अदब में शुमार हो बैठी है तोहमतों में वफ़ा यूँ घिरी हुई जैसे किसी हसीन की गर्दन में बार हो दिन रात मुझ पे करते हो कितने हसीन ज़ुल्म बिल्कुल मिरी पसंद के मुख़्तार-ए-कार हो कितने उरूज पर भी हो मौसम बहार का है फूल सिर्फ़ वो जो सर-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार हो इक सच्चा प्यार ही नहीं बस यार ऐ 'अदम' जाँ वार दो अगर कोई झूटा भी यार हो