फ़िक्र-ए-नक़्क़ाद-ए-अदब दिरहम-ओ-दीनार में है कौन सी जिन्स-ए-सुख़न कूचा-ओ-बाज़ार में है गर्मी-ए-हुस्न मिरी गर्मी-ए-अफ़्कार में है वो अगर मुझ में नहीं है मिरे अशआ'र में है पा-ब-ज़ंजीर मुझे लाख ज़माना समझे मिरे क़दमों की धमक वक़्त की रफ़्तार में है रात क़ाबू में रहे शहर के हालात मगर लाश इक लिपटी हुई सुब्ह के अख़बार में है कोई आवारा सा झोंका कोई बाग़ी सा ख़याल जिस से मैं ख़ौफ़-ज़दा हूँ मिरे अशआ'र में है कल इसी घर में ग़ज़ल उस ने सुनाई होगी जानी-पहचानी सी ख़ुश्बू दर-ओ-दीवार में है साहिल-ए-मस्लहत-ए-वक़्त मुझे जाने दे उस सफ़ीने ने पुकारा है जो मझधार में है वो मोहब्बत का मुजाहिद वो मुरव्वत का शहीद कल का 'सौलत' अभी ज़िंदा मिरे अफ़्कार में है