छिड़ा है राग भौंरे का हवा की है नई धुन भी ग़ज़ब है साल के बारह महीनों में ये फागुन भी ये रंग-ए-हुस्न-ए-गुल ये नग़्मा-ए-मस्ताना-ए-बुलबुल इशारा करती है फ़ितरत इधर आ देख भी सुन भी बड़े दर्शन तुम्हारे हो गए राजा की सेवा से मगर मन का पनपना चाहते हो तो करो पुन भी हुए रौशन ये मा'नी चाँद क्यों शा'इर को प्यारा है कमाल इस में ये है आरिज़ भी है अबरू भी नाख़ुन भी