छोड़ दे आसान रस्ता ज़िंदगी दुश्वार कर जिस तरफ़ दरिया चढ़ा हो उस तरफ़ से पार कर डूब कर कश्ती कभी उभरी नहीं पाताल से जीतना मुमकिन नहीं होता है ख़ुद को हार कर फिर नज़र आएँगे अगली मंज़िलों के पेच-ओ-ख़म देख पानी में उतर कर हाथ को पतवार कर तिश्नगी वीराँ दरीचे मुफ़्लिसी आह-ओ-बुका ऐ अमीर-ए-शहर इस मंज़र का भी दीदार कर