छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा वहम था मेरा कि पत्थर आईना हो जाएगा मैं बड़ा मासूम था मुझ को ख़बर बिल्कुल न थी मेरे छू लेते ही वो मेरा ख़ुदा हो जाएगा दायरा-दर-दायरा है सब्ज़ जंगल सुर्ख़ आग कब हवा जागे ये मंज़र कब हवा हो जाएगा बे-मुरव्वत रास्तों से बे-ख़बर शायद है वो फिर कहीं पर मेरा उस का सामना हो जाएगा सात रंगों की जबीं पर वो लिखेगा अपना नाम जब वो अपने रंग का अक्स आश्ना हो जाएगा आफ़्ताब उस राज़ से ना-आश्ना शायद नहीं क़ैद-ए-मेहवर से किसी दिन ये रिहा हो जाएगा हाथ में ले कर क़लम 'मंज़ूर' ये सोचा नहीं कारोबार-ए-लफ़्ज़ में क्या फ़ाएदा हो जाएगा