छोड़ा था अपना देस कि क़द्रें बदल गईं पहुँचा जो शहर-ए-नौ में तो सम्तें बदल गईं ख़ाना-ख़राब-हाल से बे-कैफ़ियाँ न पूछ शामें उदास हो गईं बज़्में बदल गईं कहना जो कोई बिछड़ा हुआ मुझ को पूछ ले उस शाइ'र-ए-जमाल की फ़िक्रें बदल गईं ऐ शहर-ए-ख़ामुशाँ मिरे अपने कहाँ गए कत्बे ज़मीं निगल गई क़ब्रें बदल गईं अब प्यार में वफ़ाओं की रस्में नहीं रहीं ज़ुल्फ़ों में क़ैद रहने की शर्तें बदल गईं आज़ादियों के रक़्स-ए-बरहना का दौर है अज्दाद थे ग़ुलाम वो नस्लें बदल गईं हाँ हाँ यही दयार तिरा कू-ए-यार है 'रिज़वाँ' ये क्या हुआ तिरी नज़रें बदल गईं