छुट के अब तुझ से ये आलम है कि रोते न बने ज़िंदा रहते न बने जान भी खोते न बने शोरिश-ए-ग़म भी नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा उँगलियाँ अपने लहू में भी डुबोते न बने अब तो हर साँस पे दुनिया का ख़याल आता है अब तो दामन भी तिरे ग़म में भिगोतें न बने कश्मकश आज है वो मस्ती-ओ-हुश्यारी की तेरे गेसू की घनी छाँव में सोते न बने दिल का ये हाल कि अब ज़ब्त का यारा भी नहीं पास-ए-नामूस-ए-मोहब्बत भी कि रोते न बने बात बनती है कहीं अश्क-ए-नदामत से 'पयाम' दाग़ दामन के किसी तरह भी धोते न बने