छूटता है हाथ से दामन अगर तदबीर का पाँव में एहसास होता है हमें ज़ंजीर का हौसला ईमान-ए-कामिल ज़ोर-ए-बाज़ू चाहिए मर्द को ज़ेबा नहीं देता गिला तक़दीर का तजरबे हर रोज़ होते हों नए जिस शहर में क्या तअज्जुब है कि सर कट जाए बे-तक़सीर का ख़ून जिस ने भी किया हो लोग ये कहते रहे नक़्श था दिल पर हमारे आप की शमशीर का यूँ सुनहरे ख़्वाब के पीछे मगन है हर जवाँ हो बहुत आसान लाना जैसे जू-ए-शीर का ख़िदमत-ए-मख़्लूक़ हो या हो अदब का तज़्किरा मैं नहीं क़ाइल रहा हूँ ख़ुद-ब-ख़ुद तश्हीर का ग़म अगर आए ख़ुशी के बाद तो हैरत नहीं एक रुख़ होता नहीं 'शाहिद' किसी तस्वीर का