चीख़ उठती है डगर रात के सन्नाटे में कौन है महव-ए-सफ़र रात के सन्नाटे में खिड़कियाँ सोई हुई हैं अभी हमसायों की रो रहा है मिरा घर रात के सन्नाटे में थक के फ़ुटपाथ पे सोए हैं अभी कुछ मज़दूर ऐ सड़क शोर न कर रात के सन्नाटे में मेरी खिड़की नई तस्वीर दिखा देती है जाग उठता हूँ अगर रात के सन्नाटे में दिन में हर मोड़ पे इक हश्र बपा रहता है और गुम-सुम है नगर रात के सन्नाटे में दिन में 'मेराज' मिरे दिल को सुकूँ मिलता है ख़ुद से डरता हूँ मगर रात के सन्नाटे में