चिलमन जो एक रुख़ पे थी फेंकी उतार कर हम ने अना की गठरी भी रख दी उतार कर उस पार जा के क्यों न कोई लौटता कभी देखेंगे हम भी दरिया में कश्ती उतार कर पिंजरा खुला तो रूह को बेहद सुकूँ मिला सारी थकान जिस्म ने रख दी उतार कर जिस का टिकट जहाँ का है उस को उसी जगह ये ज़िंदगी की रेल है चलती उतार कर