चिंगारियों का रक़्स था बुझते अलाव में कल रात एक क़त्ल हुआ था पड़ाव में क्या उस के जी में आई थी वो शख़्स कौन था इक चीख़ खो गई थी नदी के बहाव में दुनिया ने उस की बात न मानी ये और बात संजीदगी ज़रूर थी उस के सुझाओ में हैं ज़ेर-ए-आब गौहर-ए-नायाब बे-शुमार क्या क्या समेट लाएँगे छोटी सी नाव में ये कौन अपने रुख़ का सवेरा लिए हुए चुपके से आ गया मिरे सूने पड़ाव में उस जैसा कोई दूसरा मिलता नहीं 'सहर' मशहूर था वो शख़्स बहुत रख-रखाव में