छुप के मिलने आ जाए रौशनी की जुरअत क्या रूह के अँधेरे में चाँद की ज़रूरत क्या तू मिरी मोहब्बत के क़त्ल में मुलव्विस है और मुझी से कहता है ख़ून की शहादत क्या कौन मेरी आँखों के बंद तोड़ देता है दिल के क़ैद-ख़ाने में क़ैद है क़यामत क्या एक दूसरे को हम भूल जाएँगे इक दिन इतनी बे-क़रारी क्यूँ इस क़दर भी उजलत क्या रात से बिछड़ने के ख़्वाब देख रक्खे हैं सुब्ह रास्ते में है ख़्वाब की हिफ़ाज़त क्या एक वक़्त आता है मुंसिफ़ी नहीं मिलती झूट की वकालत क्या ख़ौफ़ की अदालत क्या ज़ुल्म सहने वालों का सब्र ख़त्म होता है सिर्फ़ एक धमकी है फैलती है दहशत क्या