चुपके से दिमाग़ में दर आए यादों के सफ़ीर बिन बुलाए कब तक दुख का धुआँ धुआँ सा कब तक ग़म के मुहीब साए बहरूपियो रूप की दुहाई तस्कीन-ए-नज़र को कोई आए बैठे हैं क़दम क़दम पे नक़्क़ाद ताईद की मिशअलें जलाए दामान-ए-ख़िरद ने ये हवा दी जितने थे चराग़ सब बुझाए आँखों से निकल गया अंधेरा तारे से पलक पे जगमगाए गुलशन गुलशन खँगाल डाला ख़ुश्बू ख़ुश्बू पुकार आए इस कोह-ए-ख़िरद को मैं करूँ क्या दीवाने से कब उठाया जाए हूँ बू-ए-गुल ख़िज़ाँ-गज़ीदा कोई जिसे ढूँडे भी न पाए पत-झड़ को रहनुमा बना कर कलियों ने अजीब गुल खिलाए दरबार-ए-सुख़न-वराँ में तन्हा बैठा है रज़ा भी सर झुकाए