दाद भी सुनता है तू सुनता है तू फ़रियाद भी वक़्त-ए-मुश्किल तू ही करता है मिरी इमदाद भी जाल में फँसना न हरगिज़ ये तिलिस्मी बाग़ है दाम ले कर है यहाँ बैठा हुआ सय्याद भी आप की जल्वागरी हर सू नुमायाँ देख ली कर दिया वीरान जिस को फिर किया आबाद भी आप की भक्ती न जब तक हो तो क्या हासिल मुझे क़ैद-ए-दुनिया से अगर हो जाऊँ मैं आज़ाद भी