दाग़ दिल के जला गया कोई ग़म की लज़्ज़त बढ़ा गया कोई सारा आलम उसी से रौशन है ज़र्रे ज़र्रे पे छा गया कोई कर गया अह्द साथ मरने का उम्र मेरी बढ़ा गया कोई रोग दीवानगी का बाक़ी था वो भी आख़िर लगा गया कोई रंग मेरा उड़ा ही जाता है आज फिर मुस्कुरा गया कोई शग़्ल रोने का दे गया 'आज़िम' उठ के महफ़िल से क्या गया कोई