ग़ज़ल कहती नहीं है बस लब-ओ-रुख़्सार की बातें बयाँ करती है वो इश्क़-ओ-वफ़ा और प्यार की बातें तकल्लुम की नहीं मुहताज और न लब-कुशाई की इशारों में बयाँ करती है हाल-ए-ज़ार की बातें कहीं कश्ती के हचकोले कहीं उम्मीद साहिल की कभी मौजों के नग़्मे हैं कभी मंजधार की बातें लताफ़त इस में फूलों की तो काँटों की चुभन भी है कहीं घुँगरू की आवाज़ें कहीं तलवार की बातें ये हक़ की तर्जुमाँ मुंसिफ़ रफ़ीक़-ए-राज़दाँ सब कुछ जुनूँ की अंजुमन में फिर दिल-ए-बेदार की बातें इसी में जाम-ए-जम जाम-ओ-सुबू साक़ी-ओ-मय-ख़ाना ये आबिद का अमल और हसरत-ए-मय-ख़्वार की बातें क़लम की नोक पर 'ताबिश' कई जज़्बे मचलते हैं वरक़ को राज़दाँ कर लें करें असरार की बातें