दम जुनूँ की हद-ए-इंतिहा पे ठहरा है

दम जुनूँ की हद-ए-इंतिहा पे ठहरा है
ये मेरा दिल है अभी इब्तिदा पे ठहरा है

उसी के लम्स से आब-ओ-हवा बदलती है
तमाम मंज़र-ए-जाँ इक अदा पे ठहरा है

कनार-ए-कुन से परे है कहीं वजूद अपना
ये कारवाँ तो ग़ुबार-ए-सदा पे ठहरा है

कुछ और देर नुमाइश है शोर-ओ-शर की यहाँ
ये इक हबाब है मौज-ए-फ़ना पे ठहरा है

शुआ-ए-सुब्ह बुन-ए-गोश में उतरती है
ज़वाल-ए-मेहर कि दस्त-ए-हिना पे ठहरा है

शब-ए-सियाह सर-ए-ख़ाल में सिमटती है
सितारा टूट के बंद-ए-क़बा पे ठहरा है

नफ़स नफ़स में भड़कती है दिल की लौ 'सरमद'
अजब चराग़ है ये बाम-ए-हू पे ठहरा है


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