जहाँ सवाल ख़ुशी ना-ख़ुशी का आ जाए ख़मोशियों में वहाँ मुद्दआ कहा जाए दिल-ओ-नज़र के उजाले दिखाएँगे राहें चले चलो कि जहाँ तक ये सिलसिला जाए मिले पनाह न अल्फ़ाज़ में ग़म-ए-दिल को कोई सुने भी तो क्यूँकर बयाँ किया जाए नशात-ए-दीद न हो बाइ'स-ए-शिकस्त-ए-नज़र निगाह-ए-दिल में कोई इस अदा से आ जाए ये फ़ैसला भी तो होता नज़र नहीं आता पराया कौन है अपना किसे कहा जाए पलट पलट के नज़ारों को देखने वाला क़दम क़दम पे नज़र को सँभालता जाए उधर वो उन की नज़र कैफ़-ओ-इम्बिसात-अंगेज़ इधर ये दिल कि ब-हर-लम्हा टूटता जाए हज़ार वज्ह-ए-नदामत हो ये रविश लेकिन ख़ुलूस-ए-दिल का 'रिशी' हक़ अदा किया जाए