दामन की हवा याद न ज़ुल्फ़ों की घटा याद अब कुछ भी नहीं सोज़-ए-ग़म-ए-दिल के सिवा याद सरगर्म-ए-सफ़र था न रहा कुछ भी मुझे याद नक़्श-ए-कफ़-ए-पा याद न मंज़िल का पता याद तुम आ गए जब याद तो कुछ भी न रहा याद कब तुम ने भुलाया मुझे कब तुम ने किया याद अब कुछ भी नहीं एक ग़म-ए-दिल के सिवा याद फिर भी है तिरी नीम-निगाही की अदा याद वो दौर कि अब मुझ को ज़रा भी न रहा याद यूँ आलम-ए-फ़ुर्क़त में तुझे मैं ने किया याद मदहोश किया जिस ने मुझे सोज़-ए-नवा से अब तक है वही नग़्मा-ए-बे-साज़-ओ-सदा याद अल्लाह रे ये बे-ख़ुदी-ए-शौक़ का आलम कूचे में तिरे आ के तिरा घर न रहा याद मुद्दत हुई ख़ुद अपनी नवा याद न आई एहसास को अब तक है मगर तेरी सदा याद यूँ सुब्ह रुलाने के लिए कम तो नहीं थी क्यों शाम-ए-जुदाई का समय आ ही गया याद कुछ तुझ को जफ़ाओं के सिवा याद नहीं है लेकिन नहीं कुछ मुझ को दुआओं के सिवा याद डरता हूँ ख़बर गर्दिश-ए-दौराँ को न हो जाए ऐ दोस्त ये क्यों आज मुझे तू ने किया याद निस्याँ का 'हयात' इस से तअ'ल्लुक़ नहीं कुछ भी उन की भी जफ़ा याद है अपनी भी वफ़ा याद