क्या बताते हैं इशारात तुम्हें क्या मा'लूम कितने मश्कूक हैं हालात तुम्हें क्या मा'लूम ये उलझते हुए जज़्बात तुम्हें क्या मा'लूम हैं यही बाइ'स-ए-आफ़ात तुम्हें क्या मा'लूम एक आँगन को फ़क़त अपने सजाने के लिए कितनी झीलें हैं मुहिम्मात तुम्हें क्या मा'लूम राज़ हस्ती का है क्या मक़्सद-ए-हस्ती क्या है हल तलब हैं ये सवालात तुम्हें क्या मा'लूम इक खनकती हुई मिट्टी हो जिला बख़्शी है कितनी प्यारी है ये सौग़ात तुम्हें क्या मा'लूम दिन गुज़रता है किसी और बहाने से मगर कैसे कटती है मिरी रात तुम्हें क्या मा'लूम बेच कर सारा असासा करो शादी 'मोहसिन' यूँ ही आती नहीं बारात तुम्हें क्या मा'लूम