दर-ब-दर मज़दूर की तक़दीर सोच मर गया है क्यों भला रहगीर सोच आलम-ए-पज़मुर्दगी के दरमियाँ हौसलों से पुर कोई तहरीर सोच आ के मक़्तल में तज़ब्ज़ुब किस लिए ख़्वाब देखा है तो फिर ता'बीर सोच इक मकान-ए-मुख़्तसर से ख़ुश न हो ये ज़मीं हो किस तरह तस्ख़ीर सोच ज़ुल्म सहना ज़ुल्म की ताईद है कैसे टूटे ज़ुल्म की ज़ंजीर सोच बे-सबब तख़रीब-ए-गुलशन रोक दे फूल हो जाएँ अगर शमशीर सोच तू निगाहों से चुराता है सुकूँ ये ख़ता है लाइक़-ए-ताज़ीर सोच लाश बच्चे की लिए साकित है वो क्यों न रोया साहिब-ए-तस्वीर सोच सब तो अपने थे अदू कोई न था कर दिया पैवस्त किस ने तीर सोच शिकवा-ए-इफ़्लास 'असअद' छोड़ कर क्यों बिकी अज्दाद की जागीर सोच